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कॉलेज के दिनों से मुझे थियेटर-ड्रामा का बहुत शौक था. उन दिनों हमारे कॉलेज में ‘नौजवानों की संसद’ नाम से एक ग्रुप था, जो हर महीने के आखिर में पूरे कॉलेज के सामने एक नाटक (प्ले) प्रस्तुत करता था.
प्ले में हम 2 लड़कियां थी और 12 लड़के थे. प्ले की थीम राजनीति पर आधारित थी, इसलिए हम दोनों को कमतर मानते हुए अक्सर हमें साइड रोल दिया जाता. जिसमें मुझे कोई फरियादी महिला या सरकारी दफ्तर में काम करने वाली महिला का रोल दिया जाता, जबकि मेरी दूसरी सहेली को पूरे नाटक में एक पोस्टर पकड़ाकर बैठा दिया जाता था.
मुझे भी बड़ी इच्छा होती थी कि मैं वो रोल करूं, जिससे मेरी प्रतिभा निखरकर आए लेकिन अक्सर मुझे ऐसे कामचलाऊं या साइड रोल ही दिए जाते थे.
एक दिन मैंने प्ले के डायरेक्टर के सामने ये बात रखी, जिसे सुनकर वो मुस्कुराते हुए बोले ‘लड़कियों को राजनीति, देश-दुनिया की खबर कम ही रहती है. इन लड़कों की तुलना में तुम्हें राजनीति की समझ नहीं हो सकती. हम तो तुम्हारी मदद ही कर रहे हैं. बेकार में तुम्हारी समझ का नमूना सबके सामने दिखे, इससे तो अच्छा है तुम ऐसे ही रोल करो. कम से कम तुम्हारा शौक तो पूरा हो रहा है न!’
उनकी ये बातें सुनकर मैं हैरान रह गई. मन में रह-रहकर एक ही ख्याल आ रहा था ‘कि ये लोग देश की राजनीति की समस्याओं के प्रति युवाओं को जागरूक करने के लिए नाटक पेश करते हैं, जबकि लिंगभेद भी समाज और देश की सबसे बड़ी समस्या है, ये लोग देश को क्या बदलेंगे. इन्हें पहले खुद को बदलना चाहिए.’
वैसे तो बचपन में कई बार लड़की होने की वजह से ऐसे लैंगिक भेदभाव की घटनाएं मेरे साथ हुई थी, लेकिन तब मुझे लगता था कि शायद आस-पड़ोस में कम पढ़े-लिखे लोग हैं इसलिए इनकी मानसिकता इतनी दबी-कुचली हुई है. कॉलेज की इस घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि असल में लिंग भेदभाव एक संर्कीण सोच है, जिससे समाज का कोई भी वर्ग ग्रस्त हो सकता है. पढ़े-लिखे लोग भी जाने-अनजाने ऐसी घटनाओं में खूब सहयोग देते हैं.
लिंग भेदभाव की शिकार हुई रोशनी की ये कहानी उन अनगिनत कहानियों में से एक है, जो वक्त के साथ हमारे भीतर ही कहीं दब-सी गई है.
समाज में रोग की तरह फैले लिंग भेदभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आप किसी भी लड़की से उनका अनुभव पूछ लीजिए, उन अनुभवों से एक-दो अनुभव ऐसे जरूर होंगे जब उन्हें लड़की होने की वजह से कमतर आंका गया होगा. घर, समाज, ऑफिस, किसी प्रतियोगिता, खेल, मंच आदि जगहों पर कभी न कभी उन्हें ऐसे कड़वे अनुभवों से वो जरूर गुजरी होंगी.
जब पूरी दुनिया में हर प्रकार के भेदभाव को खत्म करके ‘समानता’ की बात हो रही है, तो ऐसे में ये और भी जरूरी हो जाता है कि समाज के दोहरे चेहरे को दुनिया के सामने लाया जाए.
इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए टाटा-टी ‘जागो रे’ आपका सहयोग कर रहा है.
अगर आपकी जिंदगी भी ऐसे ही किसी अनुभव से होकर गुजरी है या आप पुरुष हैं लेकिन किसी महिला के साथ हुए भेदभाव के साक्षी बने हैं, तो आप भी ऐसे अनुभवों को हमारे साथ साझा कर सकते हैं. महिला और पुरुष दोनों ही इस मुहिम का हिस्सा बनें.
आवश्यक सूचना
आपकी सच्ची रचनाओं का ‘जागरण जंक्शन’ मंच को बेसब्री से इंतजार है. उनमें से चुनिंदा 3 रचनाओं को ईनाम देकर प्रोत्साहित किया जाएगा.
तीन रचनाओं का चुनाव हमारा विशेष संपादकीय समूह करेगा. आप अपनी रचनाएं 6 से 31 मार्च 2017 तक शेयर कर सकते हैं. विजेताओं के नामों की सूचना उन्हें ई-मेल के माध्यम से भेजी जाएगी. साथ ही विजेताओं के नाम उनकी फोटो के साथ ‘जागरण जंक्शन’ मंच पर भी प्रकाशित किए जाएंगे. प्रतियोगिता के नतीजे 6 अप्रैल को घोषित किए जाएंगे.
नियम और शर्ते
प्रतियोगिता के विषय में किसी भी तरह की समस्या/स्पष्टीकरण के लिए आप feedback@jagranjunction.com पर मेल कर सकते हैं.
नोट: Contest को लेकर किसी भी तरह के विवाद में जागरण जंक्शन की कोई जिम्मेदारी नहीं है.
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