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बचपन में हम कितने ही खेल खेला करते थे, जैसे घर-घर, चोर-पुलिस, डॉक्टर-डॉक्टर आदि!! जानते हैं इन खेलों का आधार क्या होता है? दरअसल, हम बचपन में जो भी अपने आसपास देखते हैं, उससे प्रभावित होकर वैसा ही बनना चाहते हैं. बालमन में तो ये छाप कुछ गहरी ही पड़ जाती है. इन खेलों में से एक खेल था टीचर बनने का खेल. आप या आपके किसी दोस्त ने बचपन में टीचर बनने का खेल भी जरूर खेला होगा बल्कि ये कहना गलत नहीं होगा कि बचपन में ज्यादातर बच्चे बड़े होकर शिक्षक बनने का सपना देखते हैं.
असल में, घर के बाद स्कूल ही एक ऐसी जगह होती है, जहां हम सबसे ज्यादा समय बिताते हैं. यहां हमें जिंदगी के कितने ही ऐसे सबक सीखने को मिलते हैं, जो किताबों में भी नहीं लिखे होते. कभी प्यार तो कभी गुस्सा दिखाते शिक्षकों का लक्ष्य हमेशा अपने विद्यार्थियों को शिक्षित करके सफलता की ओर अग्रसर करना होता है. ऐसे में स्कूल और टीचर्स के साथ ऐसी कितनी ही खट्टी-मीठी यादें जुड़ जाती है, जो जिंदगी भर याद रहती हैं. इनमें से कुछ घटनाएं तो ऐसी होती हैं, जो न सिर्फ जीवन के प्रति हमारा नजरिया बदल देती हैं बल्कि हमारे व्यक्तित्व निर्माण में भी काफी सहायक होती हैं.
आज इतने सालों बाद भी जब आप ‘टीचर्स डे’ पर स्कूली बच्चों को टीचर बनकर स्कूल जाते हुए देखते हैं, तो कहीं न कहीं स्कूल और अपने टीचर्स से जुड़ी कितनी ही यादें ताजा हो जाती होंगी. ऐसे में ‘जागरण जंक्शन’ मंच दे रहा है, उन यादों को हमारे साथ बांटने का मौका. इस ‘टीचर्स डे’ आप भी अपने किसी टीचर्स से जुड़ी हुई घटना, संस्मरण या फिर ऐसा कोई खास पल सांझा कर सकते हैं, जिसने आपके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला हो.
तो फिर देर किस बात की, अपने विद्यार्थी जीवन के अनुभवों को कीजिए हमारे साथ सांझा.
नोट : अपना ब्लॉग लिखते समय इतना अवश्य ध्यान रखें कि आपके शब्द और विचार अभद्र, अश्लील और अशोभनीय न हो तथा किसी की भावनाओं को चोट न पहुंचाते हो.
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