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अपने घरों में वाइ-फाइ लगाने से पहले लोग इसके परिणामों के विषय में सोचते हैं. अपने परिवार के सदस्यों से विचार-विमर्श करने के बाद वाइ-फाइ लगाने का निर्णय लिया जाता है. प्रयोग के दौरान अच्छा नहीं लगने या जरूरतें पूरी नहीं कर पाने पर लोगों के सामने विकल्प होता है कि वो कनेक्शन चालू रखें या बंद करा दें.
अपने घरों में ‘प्रयोग’ करने के लिये स्वतंत्र नागरिकों को अपनी चुनी हुई सरकार को भी “नीतियों में नवाचार” के इस्तेमाल की स्वतंत्रता देनी चाहिये. दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने के लिये बनी सम-विषम नीति को कानून बनाने से पहले उसके प्रभावों की जानकारी के लिये इसे प्रयोगिक तौर पर शुरू किया गया है.
यह देखा गया कि प्रायोगिक तौर पर शुरू करने के साथ ही इस नीति की आलोचना शुरू कर दी गयी. मैट्रो में दीपावली के समय की भीड़ को इस नीति के कारण उपजी भीड़ बताकर प्रसारित कर दिया गया. दरअसल, ये कवायदें समाज के रूप में हमारी जड़ता की ओर इशारा करती है. ये हमारी उच्छृंखलता को भी उजागर करती है कि हम एक नागरिक के बतौर किसी भी प्राधिकार को मानने से इंकार करते हैं.
अगर आपको लगता है कि प्रायोगिक तौर पर शरू की गयी इस नीति की पहले दिन से आलोचना करना सही है तो उसे पूरे जागरण जंक्शन डॉट कॉम के पाठकों को बताएं. अगर आपको लगता है कि नागरिक इस नीति के परिणामों पर समय-पूर्व आलोचना कर रहे हैं तो भी अपने विचारों से जागरण जंक्शन डॉट कॉम के पाठकों को अवगत करायें.
नोट: अपना ब्लॉग लिखते समय इतना अवश्य ध्यान रखें कि आपके शब्द और विचार अभद्र, अश्लील और अशोभनीय ना हों तथा किसी की भावनाओं को चोट ना पहुंचाते हों.
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