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12 रूपये में थाली की बात कहते समय राज बब्बर पूरी तरह गलत नहीं थे. सांसद अपने संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधि होता है और संसद में बैठने के कारण वह एक साथ भारतीय राज्यों के प्रतिनिधियों से मिल-बैठ बातें करता है. इस नाते भी सांसद राज बब्बर का कथन गलत नहीं कहा जा सकता.
जिस देश में दही का जोरन भी 5 रूपये से कम में नहीं मिलता वहाँ की संसदीय कैंटीन में 3 रूपये की दही, 1 रूपये की पूड़ी और 4 रूपये में फ्राइड दाल का मिलना राज बब्बर के दावे को बल देता है. उस पर जब संसद में बैठने वाले ज्यादातर का उद्देश्य संसदीय कार्यवाही को बेवजह बाधित करना ही रह गया हो तो उनके वेतन और भत्ते में वृद्धि पर लोगों की नकारात्मक प्रतिक्रिया भी गलत नहीं कही जा सकती.
बाधा को अपना संसदीय अधिकार मान लेने वाले सासंदों को सस्ते खाने के अलावा, ऋण संबंधी रियायतें, वेतन-भत्तों में बढ़ोत्तरी के अलावा अन्य तमाम सुविधायें मिलती है. अब इन सब का कोई औचित्य नजर नहीं आता. हो सकता है कि पंद्रहवीं लोक सभा में व्यवधान का रिकॉर्ड इस बार टूट जाये! लेकिन महत्तवपूर्ण यह है कि ऐसी स्थिति में क्या जनता की कमाई को केवल हंगामा करने पर स्वाहा करने का कोई औचित्य है?
संसद से देश की नीतियाँ तय होती है. संसद को सुचारू रूप से चलाने के लिये नागरिकों के पैसे खर्च किये जाते हैं. इस लिहाज से मतभिन्नता के नाम पर संसदीय कार्यवाही को बाधित करते रहना संसदीय गरिमा के प्रतिकूल है. इस गम्भीर विषय पर आप अपनी राय जागरण जंक्शन के ब्लॉग मंच के जरिये नागरिकों से साझा कर सकते हैं.
नोट: अपना ब्लॉग लिखते समय इतना अवश्य ध्यान रखें कि आपके शब्द और विचार अभद्र, अश्लील और अशोभनीय ना हों और किसी की भावनाओं को चोट ना पहुँचाते हों।
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