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“शब्द सीमित हो जाते हैं, जब लिखना माँ पर होता है!” लिखने वालों को कभी ना कभी शब्दों के अभाव की इस स्थिति का सामना करना पड़ा होगा. ऐसा क्यों होता है कि दुनिया भर की चीज़ों पर लिखने वालों को जब माँ के बारे में लिखने को कहा जाता है तो की-बोर्ड पर अंगुलियाँ ठक-ठकाने से पहले दिमाग की सारी नसें सक्रिय हो उठती हैं.
मशहूर लेखक-कवि मुनव्वर राणा ने माँ को शब्दों से ऐसे बाँधने की कोशिश की है-
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई!
ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
सृष्टि का सृजन किसी ने नहीं देखा, लेकिन माँ की सृजनात्मकता लोग देखते हैं. एक बच्चे के माँ के गर्भ से बाहर निकल संसार में आने का सृजन. यह अपने आप में अद्भुत सृजन है, क्योंकि कोई माँ अपने गर्भ में मात्र एक शरीर नहीं बल्कि भविष्य पालती है.
कई कवियों, लेखकों, शायरों, गीतकारों-संगीतकारों ने माँ को शब्दों के दायरे में लाने की सफल-असफल कोशिशें की हैं. हालांकि, जितनी बार भी माँ को शब्दों में ढ़ाला गया उतनी ही बार ममत्व की इसजीती-जागती मूर्ति का आकार बढ़ता गया. ऐसी हर कोशिशों ने एहसास दिलाया की माँ को व्यक्त करने के लिये शब्दों की दिक्कतें आती रहेंगी.
लेकिन, माँ के चित्रण में आने वाली शब्दों की इस कमी को दूर करने का जागरण जंक्शन आपको दे रहा है मौक़ा! अपनी माँ के प्रति उद्गार, कृतज्ञता को अभिव्यक्त करने का अनूठा मौक़ा!
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