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रंग दे जहाँ को अपनी होली के रंग में

Jagran Junction Blog
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चहुँओर होली के गीत बजने लगे हैं। तीव्र ध्वनियों में ‘जोगीरा शारा…रा…रा’ के गीत घरों और दुकानों की दीवारों के रास्ते गलियों में सुनायी देने लगी है। उमंगों का ज्वार प्रतिपल मन-मस्तिष्क पर दस्तक दे रहा है। फाल्गुनी पूर्णिमा बस आने ही वाली है। ‘फाल्गुनिका’ यानी फाल्गुन-पूर्णिमा का दिन भारतीयों के लिये विशेष महत्तव वाली होती है।


फाल्गुनिका हेमन्त अथवा पतझड़ के अंत की सूचक मानी जाती है। इस दिन भारतवर्ष के उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम में हर्षोल्लास से एक-दूसरे के साथ रंगों का त्योहार मनाया जाता है। एक ही पर्व होने के बावजूद भौगोलिक विभिन्नताओं का इस पर असर होता है। इसके कारण इस त्योहार को मनाने में भी कुछ विभिन्नतायें आती है।


होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन किया जाता है। अगले दिन जहाँ कुछ लोग केवल फूलों के रंगों की होली खेलते हैं वहीं कई बाजार में उपलब्ध कृत्रिम रंगों से। दिन-भर एक दूसरे पर रंगों की बाल्टी उड़ेली जाती है। रंग-बिरंगे सुगंधित गुलालों से सारा वातावरण रंगीन लगने लगता है। तरह-तरह के लजीज़ व्यंजनों से बर्तनों की छटा देखते ही बनती है। जहाँ व्यंजनों के रंग और इसकी खुशबू बच्चों को ललचाती है वहीं इसकी तैयारी तक रसोई में न घुसने की माँ की हिदायतें बालमन पर इनके बनकर तैयार हो जाने तक कर्फ्यू का एहसास कराती है।


रंग खेलने से पहले परिवार के वरिष्ठ सदस्य देवी-देवताओं की स्तुति में व्यस्त होते हैं। ईश्वर के भोग में चंदन और गुलाल के साथ उस दिन के लिये बने व्यंजन होते हैं। संध्या के समय युवकों की टोली होली और फगुआ के गीत गाते हुये हर दरवाज़े पर आती है और एक दूसरे को गुलाल लगाती है। बच्चे अपने से बड़ों के चरणों व मस्तक पर गुलाल लगाकर प्रणाम करते हैं। इस तरह होली हर्षोल्लास से मनायी जाती है।


अगर आपको लगता है कि आपके क्षेत्र-विशेष में होली इससे विशिष्ट तरीके से मनायी जाती है अथवा आपके यहाँ बनने वाले व्यंजन हैं ज्यादा स्वादिष्ट तो जागरण जंक्शन आपको दे रहा है अपने क्षेत्र के होली मनाने के अनूठे तरीकों और विशिष्ट व्यंजनों को समस्त पाठकों के साथ साझा करने का मौका।


नोट: अपना ब्लॉग लिखते समय इतना अवश्य ध्यान रखें कि आपके शब्द और विचार अभद्र, अश्लील और अशोभनीय ना हों और किसी की भावनाओं को चोट ना पहुँचाते हों।

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