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दिसम्बर में सड़कों पर चलती आपकी गाड़ी अगर जाम में फँस जाए; अगर फिल्मी गाने आपके कान के परदों को फाड़ने लगे; अगर अनिच्छा के बावजूद आपको बेतरतीब दिखती भीड़ का नाच देखने पर मजबूर होना पड़े तो समझ लीजिए किसी की बैंड बजने वाली है। किसी का बैंड बजना या बजवाना अच्छी बात हो सकती है, लेकिन किसी एक के चक्कर में सभी राहगीरों का बैंड बजाना अच्छी बात नहीं है।
यह शादियों का मौसम है जब एक बंधन में बँधने जा रहे दो लोग अपने जीवन के नये सफर के रास्ते पर चलते हैं। यह सिर्फ दो लोगों का मिलन भर नहीं है बल्कि दो परिवारों, दो समाजों, दो संस्कृतियों, विभन्न रस्मों और रीति-रिवाज़ों का नया अध्याय है।
लेकिन वर्षों से आ रही शादी की रीति-रिवाज़ों को हमने कुत्सित कर दिया है। भारतीय शादियाँ अब केवल शादियाँ न होकर अपनी धन-संपदा, वैभव और रूतबे का नंगा प्रदर्शन करने वाली झाँकियाँ बनती जा रही है। सादगी का स्थान अब रंगीनियों और ताम-झाम ने ले लिया है।
भारतीय शादियाँ ‘जैसी आय वैसा खर्च’ के सिद्धांत पर आधारित होती जा रही है। हर कोई अपने जेब के आकार से ज्यादा बड़ी रकम खर्च करने को तैयार हैं। कम आय वाले लोग कर्ज़ लेकर शादी करने को बुरा नहीं समझते हैं। शादियों का वर्गीकरण सामाजिक कद के आधार पर बाँट दिया गया है। शादियों में सादगी का स्थान अब विभिन्न प्रकार के शराबों, मँहगी सजावटों, गगनभेदी पटाखों ने ले लिया है। इस पर न सिर्फ लाखों रूपये पानी की तरह बहाए जा रहे हैं बल्कि यह अन्य कई शारीरिक-सामाजिक-नैतिक बुराईयों को भी जन्म दे रही है।
हो सकता है कि इस महीने आप भी ऐसी ही किसी शादी में मेहमान-मेज़बान बनकर शामिल होने जा रहे हो। ऐसा न भी हो तो यह तो हो सकता है कि आपने ऐसी कोई शादी देखी हो! अगर आप ऐसी किसी शादी के गवाह रहे हों या बनने जा रहे हों तो आप ऐसी शादियों में होने वाली बर्बादियों के बारे में अपने अनुभव हमारे जरिये समस्त पाठकों से साझा कर सकते हैं। सादगी भरी शादी को देखने वाले लोग भी अपने अनुभवों को साझा कर लोगों की शादी में होने वाली फिजूलखर्ची को रोकने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
नोट: अपना ब्लॉग लिखते समय इतना अवश्य ध्यान रखें कि आपके शब्द और विचार अभद्र, अश्लील और अशोभनीय ना हों तथा किसी की भावनाओं को चोट ना पहुंचाते हों।
धन्यवाद
जागरण जंक्शन परिवार
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