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प्रिय पाठकों,
भारतीय त्योहार केवल आस्था पर आधारित नहीं है वरन इनका संबंध ऋतु परिवर्तन और अगर वृहद रूप में कहा जाय तो प्रकृति से है। सूर्य के उत्तरायण और मकर राशि में प्रवेश करने पर जहाँ हम मकर संक्रांति मनाते हैं वहीं इसे बसंत ऋतु के आगमन का भी संकेत मानते हैं। इसी तरह हमारे देश में कई पर्व विभिन्न रूपों में मनाए जाते हैं।
शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की पूजा के एक महीने बाद कार्तिक के महीने में हम दीवाली मनाते हैं। दीवाली जो दर्शाता है अंधकार पर प्रकाश के महत्तव को और अज्ञानता पर ज्ञान के महत्तव को। इस दिन जहां हम धन की देवी माँ लक्ष्मी की पूजा करते हैं वहीं जीवन में दरिद्रता और मलिनता के अंधकार को मिटा कर समृद्धी की कामना भी करते हैं।
दीवाली को एक बड़ा उत्सव का रूप देने में भारतीय संस्कृति के लोक-व्यवहारों का प्रमुख योगदान रहा है। यहां हर भारतीय अलग-अलग तरीके से इस त्योहार को मनाता है। इस दिन कोई ‘लक्ष्मी घर, दरिद्रता बाहर’ बोल दरिद्रता से अपनी दूरी बढ़ाता है तो कोई लौह अस्त्रों की पूजा करता है। मिठाई के अलावा किसी घर में कढ़ी-पकौड़े बनाए जाते हैं तो कहीं खीर पूरी। कोई नया कुर्ता-धोती पहनता है तो कोई नए कुर्ते के साथ पायजामा। गाँवों में लक्ष्मी-पूजन के बाद लोग अपने घरों से निकल बड़े-बुजुर्गों के पैर छू उनसे आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।
त्योहारों को विभिन्न तरीके से मनाना ही इसकी विविधता है। अगर आपको लगता है कि दीवाली मनाने के आपके रिवाज औरों से हैं अलग तो इसे हमारे साथ साझा कीजिए। जागरण मंच आपके रिवाजों को अन्य ब्लॉगरों के साथ बांटने का मौका दे रहा है। आप अपने अनुभवों को भी हमारे साथ साझा कर सकते हैं.
नोट: अपना ब्लॉग लिखते समय इतना अवश्य ध्यान रखें कि आपके शब्द और विचार अभद्र, अश्लील और अशोभनीय ना हों तथा किसी की भावनाओं को चोट ना पहुंचाते हों।
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