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आजादी के महासंग्राम के बाद आज हम खुद को प्रभुत्व संपन्न और आजाद कहलवाने के साथ-साथ गणतांत्रिक कहलाने का दम भी भरते हैं। लेकिन क्या आज का भारत वही भारत है जिसे उन सेनानियों की आंखों ने देखा था, जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया लेकिन कोई शिकायत नहीं की? क्या किसी ने यह कल्पना भी की थी कि जिस भारत को आजाद करवाने के लिए अनगिनत लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी वही भारत आज अपने ही लोगों की परेशानियों का सबब बन जाएगा?
26 जनवरी, 1950 के दिन भारत के संविधान को लागू किया गया। सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से एक पवित्र किताब माने जाने वाले संविधान में यूं तो समानता के अधिकार को मुखर रूप में अंकित किया गया है लेकिन इसका उपयोग कभी कोई नहीं कर पाया। इस अधिकार का उपयोग तो कभी हुआ नहीं इसके विपरीत किताब के एक गैर जरूरी पन्ने की तरह इसे नजरअंदाज कर हर बार पलटा ही जाता रहा।
अमीरी गरीबी के बीच जो खाई पहले से ही विद्यमान थी वह समय के साथ-साथ और अधिक बढ़ती जा रही है। इतना ही नहीं, लिंग भेद के जो भयानक दुष्परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं उसे देखकर तो इंसानियत पर से ही विश्वास उठने लगा है।
लेकिन कहते हैं न उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। कुछ ही दिनों में भारत अपने गणतांत्रिक होने की 64वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। इस मौके पर जागरण जंक्शन मंच अपने सभी सम्माननीय पाठकों से यह आग्रह करता है कि वह गणतांत्रिक भारत के वर्तमान हालातों और भविष्य की सुनहरी उम्मीदें मंच के अन्य पाठकों के साथ साझा करें।
आप चाहें तो कमेंट या फिर अपना स्वतंत्र ब्लॉग लिखकर अपने विचार अन्य लोगों के साथ बांट सकते हैं। अपने विचारों को संप्रेषित करने का आपके पास यह एक सुनहरा अवसर है।
नोट: उपरोक्त मुद्दे पर आप कमेंट या स्वतंत्र ब्लॉग लिखकर अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं। किंतु इतना अवश्य ध्यान रखें कि आपके शब्द और विचार अभद्र, अश्लील और अशोभनीय ना हों तथा किसी की भावनाओं को चोट ना पहुंचाते हों।
धन्यवाद
जागरण जंक्शन परिवार
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