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विकास के लिए छोड़नी होगी हठ और हिंसा की नीति

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गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने पश्चिम बंगाल के नक्सल प्रभावित इलाकों के दौरे पर नक्सल विरोधी अभियान में सेना को शामिल किए जाने से इनकार करते हुए नक्सलियों के सामने वार्ता का नया प्रस्ताव रखा है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि विकास की कमी के कारण ग्रामीणों के पास असंतुष्ट होने के कारण हैं.

 

केन्द्र सरकार द्वारा नक्सलियों को वार्ता की मेज पर लाने का प्रयास सराहनीय तो है ही साथ ही यह इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि अधिकांश नक्सलियों को यह भी नहीं पता कि वे किस उद्देश्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इन नक्सलियों में से कुछ तो बेरोजगार है जिन्हें बरगलाकर हिंसक अभियान में शामिल कर लिया गया है और कुछ गरीब मजदूर जिन्हें थोड़े से रुपए देकर.

 

नक्सल आन्दोलन आज अपने निहितार्थ को काफी हद तक खो चुका है. पवित्र उद्देश्यों के साथ आरंभ किया गया यह आंदोलन उसी समय बदनाम होने लगा जबकि धन-सत्ता की चाहत ने इसे शांतिगत प्रक्रियाओं से बहुत दूर कर दिया. जो नक्सली नेता वाकई समाधान की तलाश में थे उन्हें उपेक्षित करने का परिणाम और भी खतरनाक सिद्ध हुआ. नक्सली संगठनों पर उन नेताओं की पकड़ कायम होने लगी जो अधिकाधिक रूप से अपनी धाक जमाने के लिए केवल और केवल हिंसा का मार्ग अपनाना चाहते हैं.

 

जिन मुद्दों का समाधान वार्ता द्वारा निकाला जा सकता था उन्हें हिंसा द्वारा हल किए जाने के क्रम ने जनता और उनके अपने समर्थकों के बीच भी ना सिर्फ उन्हें ही बल्कि नक्सल आन्दोलन को ही अलोकप्रिय कर दिया. ऐसे में इन नेताओं के पास भयादोहन की राजनीति के अलावा विकल्प ही क्या था. फिर इन नेताओं ने हठ और दबाव की पॉलिसी चली. लेकिन इस तरह से अपनी बात मनवाने की नीति हालात को और भी जटिल बना रही है.

 

उल्लेखनीय है कि देश के किसी भी भाग में होने वाली हिंसा का समर्थन किसी भी प्रकार से नहीं किया जा सकता है. कोई भले ही व्यवस्था के खिलाफ हो या उसे किसी कारण से व्यवस्था से चोट पहुंची हो तो वह किसी निर्दोष की हत्या करने का हकदार नहीं हो जाता. इतना ही नहीं, उसे इस बात का भी हक नहीं है कि वह व्यवस्था को लागू करने वाली एजेंसियों पर हमला बोले. जबकि नक्सली अक्सर ऐसे ही हिंसात्मक कृत्यों को को अंजाम दे रहे हैं जो किसी भी प्रकार से उचित नहीं है.

 

होना तो यह चाहिए कि नक्सल आन्दोलन में भरोसा करने वाले सभी नेता वार्ता का स्वागत करें और सरकार तथा अन्य राजनीतिक दलों के साथ मिलकर गरीब व शोषित-पीड़ित जनता की समस्याओं का निदान करने के लिए आगे बढ़ें तभी जाकर पूरे देश में शांति कायम कर विकास की राह पर आगे बढ़ा जा सकेगा.

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